• दिन 53: यीशु के साथ समय कैसे बिताएँ
    Feb 22 2024
    मरकुस 6:30-56, निर्गमन 31:1-33:6, भजन संहिता 25:1-7, फरवरी 1974 में मेरी यीशु के साथ मुलाकात हुई। मैं उन लोगों का बहुत आभारी हूँ जिन्होंने शुरुवात से मुझे 'शांत समय’ की महत्ता को सिखाया। पुराना प्रचलित शब्द 'शांत समय’ (इसका अर्थ है बाईबल पढ़ने और प्रार्थना करने के लिए अलग निकाला गया समय) इसका उद्गम शायद से नये नियम के लेखांश में यीशु के वचनों में से हुआ हैं, 'मेरे साथ एक शांत जगह में चलो’ (मरकुस 6:31)। जब मैं अठारह वर्ष का था तब से ही मैंने प्रतिदिन सुबह की शुरुवात इसी तरह से की है। मैं एक शांत जगह में यीशु के साथ अकेले समय बिताने की कोशिश करता हूँ। कभी - कभी यह बहुत थोड़े समय के लिए होता है, और कभी यह बहुत देर तक चलता है। लेकिन जैसे कि मुझे दिन की शुरुवात नाश्ते के बिना करना पसंद नहीं हैं, वैसे ही मैं आत्मिक भोजन के बिना दिन की शुरुवात करने की कल्पना नहीं कर सकता हूँ। लगभग हमेशा, मैं बाईबल पढ़ने से शुरुवात करता हूँ, क्योंकि मैं विश्वास करता हूँ कि यह ज़्यादा ज़रूरी है कि यीशु मुझसे बात करें, इसकी तुलना में कि मैं उनसे बात करॅं। मेरे प्रतिदिन के विचार अब इन नोट्स के मुख्य आधार हैं, जिन्हें हम अपने बाइबल इन वन यर में भेजते हैं।
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  • दिन 52: साथ रहना बेहतर है
    Feb 21 2024
    मरकुस 6:6-29, निर्गमन 29:1-30:38, नीतिवचन 5:15-23, जो डोरी तीन धागों से बटी हो वह जल्दी नहीं टूटती" (पद - 9,12)। लेखक विवाह के चित्र के रूप में, निकी ली दो अलग रंगो की ऊन की डोरी लेते हैं और उन्हे एक साथ बुनते हैं। एक साथ वे मज़बूत बन जाते हैं लेकिन फिर भी उन्हे आसानी से तोड़ा जा सकता है। फिर वे तीसरी मछली पकड़ने की जाल की डोरी लेते हैं जो कि लगभग दिखाई नहीं देती हैं। इस तीसरी डोरी के कारण ऊन के दो टुकड़ो को तोड़ना लगभग असंभव बात है। (मैंने एक बार इस उदाहरण का इस्तेमाल करने की कोशिश की थी लेकिन, मुझे अब याद नहीं आ रहा है क्योंकि यह बुरी तरह से बिगड़ गया था!) जो बात वे अच्छी तरह से बताते हैं, और जो सभोपदेशक के लेखांश से मिलती है, वह है कि मित्रता और विवाह अद्भुत उपहार हैं, परंतु मित्रता और विवाह के बीचों - बीच परमेश्वर का होना महान सामर्थ की एक अदृश्य डोर को प्रदान करता है। आज के लेखांश में हम लोगो के साथ और परमेश्वर के साथ मज़बूत संबंध की महत्ता को देखते हैं। हम देखते हैं कि विवाह, मिशन और सेवकाई में कैसे दो, एक से ज़्यादा मज़बूत होते हैं।
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  • दिन 51: परमेश्वर से मुलाकात कैसे करें
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  • दिन 50: परमेश्वर मुझ से प्रेम करते हैं
    Feb 19 2024
    मरकुस 4:30-5:20, निर्गमन 25:1-26:37, भजन संहिता 23:1-6, वेल्श पर्वतीय क्षेत्र में ऊँचाई पर, दो सेवक एक जवान चरवाहे से मिले जिसे सुनाई कम देता था और जो अशिक्षित था। उन्होंने समझाया कि यीशु *उसके चरवाहा* बनना चाहते हैं, जो कि हमेशा उसका खयाल रखेंगे जैसे कि वह अपनी भेड़ों का रखता है। उन्होंने उसे उसके दाहिनी हाथ की उंगलियों और अंगूठे का उपयोग करके इन शब्दों को याद करना सिखाया, *प्रभु मेरा चरवाहा है’* (भजन संहिता 23:1), जो कि उसके अंगूठे से शुरू होता है फिर हर एक उंगली पर एक - एक शब्द। उन्होंने उसे चौथे शब्द ‘मेरे’ पर रूककर यह याद रखना सिखाया कि ‘यह भजन संहिता मेरे लिए है’। कुछ वर्षों के बाद उनमें से एक सेवक उस गाँव से गुज़र रहा था जहाँ पर वह चरवाहा लड़का रहता था। पिछली सर्दी में भयंकर तूफान आया था और वह लड़का पहाड़ी पर मर गया और बर्फ के नीचे दफन हो गया। गाँव वाला जो यह कहानी बता रहा था, उसने कहा, ‘एक अजीब बात हुई’ जिसे हम नहीं समझ पाए। जब उस लड़के के शरीर का पता चला तो वह *अपने दाहिने हाथ की चौथी उंगली पकड़े हुए था’*। यह कहानी हम सभी के लिए परमेश्वर के व्यक्तिगत प्रेम को बयान करती है। आजकल कई लोग परमेश्वर के बारे में सोचते हैं कि (वे लोग सोचते हैं क्या परमेश्वर सच में हैं) वह कोई महान व्यक्तित्वहीन शक्ति है। मगर, बाइबल के परमेश्वर बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। उनका हमारे साथ संबंध बहुत व्यक्तिगत है। संत पौलुस लिखते हैं, ‘जिस ने मुझ से प्रेम किया, और मेरे लिये अपने आप को दे दिया’ (गलातियों 2:20) वह *‘मेरे परमेश्वर है’* (फिलिप्पीयों 4:19)। परमेश्वर मुझ से प्रेम करते हैं।
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  • दिन 49: आपका प्रेम पत्र
    Feb 18 2024
    मरकुस 3:31-4:29, निर्गमन 23:1-24:18, भजन संहिता 22:22-31, धन्यवादपूर्वक, हमारे संबंध बनने के बाद ऐसा बहुत कम हुआ होगा कि मैं अपनी पत्नी पिपा से अलग रहा हूँ। मगर, हमारी शादी होने से पहले, तीन सप्ताह का समय था जब मैं उससे दूर रहा। उन दिनों में, ईमेल या मोबाइल के बिना, हमारी बातचीत का एकमात्र माध्यम पत्र था। मैंने हर दिन लिखा। उसने हर दिन लिखा। मुझे अब भी गहन जोश और आनंद याद है, जब मैंने लिफाफे पर उसकी लिखावट देखी तो मैं जान गया कि इसके अंदर पिपा का पत्र है। मैं जल्दी से पत्र लेकर एकांत जगह पर इसे पढ़ने के लिए चला जाता था! वास्तव में पत्र इतना कीमती नहीं था, लेकिन यह पत्र उसके द्वारा लिखा गया था जिससे मैं प्रेम करता हूँ, इसलिए यह मेरे लिए कीमती था। बाइबल आपके लिए परमेश्वर की ओर से एक प्रेम पत्र है। बाइबल को इतना दिलचस्प इसकी पुस्तकें नहीं बनातीं, बल्कि इसके द्वारा हम उस व्यक्ति से मुलाकात करते हैं जिनसे हम प्रेम करते हैं। पूरी बाइबल यीशु के बारे में है। नया नियम निश्चित ही यीशु के बारे में है। फिर भी, यीशु ने पवित्र शास्त्र के बारे में कहा है: ‘ यह वही है, जो मेरी गवाही देता है’ (यूहन्ना 5:39) (यानि, पुराना नियम) जो पूरी तरह से उनके जीवन में था।
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  • दिन 48: अपने अंतःकरण को तेज़ करें
    Feb 17 2024
    मरकुस 2:18-3:30, निर्गमन 21:1-22:31, नीतिवचन 5:1-14, ?’ मैं एक नास्तिक हुआ करता था। मेरा मानना था कि हमारे शरीर, हमारा मन और परिस्थितियाँ जिसमें हम जन्में हैं ये सभी हमारे कार्य को निर्धारित करते हैं। तर्क संगत तरीके से, मुझे ऐसा लगता था कि कोई ईश्वर नहीं है और नैतिकता के लिए कोई आधार नहीं है। इसलिए इस तर्क को मानते हुए, कुछ भी ‘अच्छा’ या ‘बुरा’ नहीं है। फिर भी, गहराई में, मैं जानता था कि ‘अच्छे’ और ‘बुरे’ के रूप में ऐसी कोई चीज़ है। हाँलाकि मैं परमेश्वर पर विश्वास नहीं करता था, फिर भी मैं उन शब्दों का इस्तेमाल करता था। फिर भी जब तक मेरी यीशु से मुलाकात नहीं हुई थी, मैं जान गया था कि एक परमेश्वर हैं जिन्होंने एक नैतिक सृष्टि की रचना की है। पवित्र शास्त्र में और खासकर व्यक्तिगत रूप से यीशु मसीह में, अच्छे और बुरे की प्रकृति प्रकट होती है। परमेश्वर ने हमें अंत:करण दिया है ताकि हम जान लें कि कुछ चीज़ें ‘अच्छी’ हैं और बाकी की ‘बुरी’ हैं। लेकिन हमारा अंत:करण धूमिल हो सकता है और उन्हें सत्य की वस्तुनिष्ठ द्वारा तेज़ किया जा सकता है। भला करना या बुरा करना…
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  • दिन 47: पहली चीज़ों को पहले रखें
    Feb 16 2024
    मरकुस 1:29-2:17, निर्गमन 19:1-20:26, भजन संहिता 22:12-21, हमारी शादी के थोड़े ही दिनों मे, मैं और पिपा शादी के बारे में सप्ताहांत पर गए। उस सप्ताहांत के दौरान *प्राथमिकताओं* पर एक सत्र था। हमें पाँच कार्ड्स दिये गए – हर एक में कुछ शब्द लिखे थे - 'काम', 'परमेश्वर', 'सेविकाई', 'पति/पत्नी', और 'बच्चे'। हमें इन्हें प्राथमिकताओं के अनुसार क्रम में रखने के लिए कहा गया। अंतर्दृष्टि से, मैं देख सकता हूँ, मैंने उन्हें बिल्कुल गलत क्रम में रखा था। मैंने 'परमेश्वर' को पहले रखा (कम से कम मैंने वह तो सही किया था - लेकिन यह तो साफ ज़ाहिर था) इसके बाद सेविकाई, पत्नी, काम, और अंत में बच्चे (उस समय हमारे कोई बच्चा नहीं था, इसलिए वे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं लगे!)। जब लीडर्स हमें सप्ताहांत की इन प्राथमिकताओं में से ले गए, तो मुझे यह स्पष्ट हो गया कि मेरा क्रम इस तरह से होना चाहिये था: पहले परमेश्वर, फिर मेरी पत्नी (प्रमुख रूप से मेरी बुलाहट), हमारे बच्चे, मेरा काम (मेरी प्राथमिक सेविकाई), और अंत में मेरी सेविकाई – जो कि बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, पर इसे मुझे अपने जीवन की प्राथमिक ज़िम्मेदारियों को बदलने नहीं देना चाहिये। जैसा कि दार्शनिक गोथे लिखते हैं, 'जो चीज़ें सबसे ज़्यादा ज़रूरी हैं, उन्हें उन चीज़ों की दया पर नहीं रखना चाहिये जो सबसे कम ज़रूरी हैं।' *पहली चीज़ों को पहले रखें*। जो चीज़ें परमेश्वर के लिए ज़्यादा मायने रखती हैं हमें उन्हें अपने जीवन में पहले स्थान पर रखना चाहिये।
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  • दिन 46: जीवन के उतार - चढ़ाव
    Feb 15 2024
    मरकुस 1:1-28, निर्गमन 17:1-18:27, भजन संहिता 22:1-11, आज के लेखांश में हम देखते हैं कि आत्मिक उतार और चढ़ाव के बीच गहरा संबंध है
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