This poetry is a sarcastic take on the rampant blockades (mostly road blockades) enacted by the politicians and their supporters
चक्का जाम
बड़े से दल के नेताजी का
देखो आया है फरमान
बंद करो सब हाट खोमचे
अब करना है चक्का जाम
लाठी डंडे धरो मशालें
शोर मचाके के भर दो कान
शहर जलेगा आज अगर कोई
दिखा सड़क या खुला दुकान
काले नीले उजले कुरतों में
सजधज काटा खूब बवाल
अकड़ में घूमे पार्टी वाले
लगा के माथे पट्टी लाल
भगा भगा के मारा सबको
पूछा जिसने कोई सवाल
टरक फूँक दी सड़क जला दी
तोड़ के ताले लूटा माल
मौज हुई बच्चों की जब
बस बीच रास्ते लौटी थी घर
सहम के दुबके पर सब के सब
जब देखा बाहर का तूफान
किसी तरह से ड्राइवर बाबू
बच्चों को घर तक पहुँचाए
बच्चे घर जबतक ना पहुँचे
हलक में अटकी माँ की जान
दल मजदूरों का भाग ना पाया
भीड़ देख कर घबराया
पर लगाके बुद्धि घुसा भीड़ में
पट्टी पहन ली डंडा थाम
बढ़े भीड़ के साथ मिला
तब आगे नेता का लंगर
सब दबा के ठूँसे हलवा पूरी
मुरगा भात और पकवान
प्रसव कराने को थी निकली
अस्पताल को एक महिला
हुआ दर्द उस जाम मे फसंकर
पति भी व्याकुल था हैरान
प्रसव हुआ उस गाड़ी में ही
बलवे में गूँजी किलकारी
सुनके पसीजा भीड़ का भी मन
शरम के मारे खुल गया जाम
उस बंदी की भागमभाग में
एक हलवाई का भाग जगा
एक बड़ी कढ़ाई ले कर सीधा
भागा बिना ही देकर दाम
घर की गली के बाहर से ही
दिखे बिलखते बीवी बच्चे
खोल जिसे बाजार गया था
फूँकी पड़ी थी उसकी दूकान
नेता जी तो बड़े ही खुश थे
सफल हुआ था चक्का जाम
जल्द ही तोते उड़े मिली जब
चीठ्ठी पत्नी की उनके नाम
उसमें लिखा था ओ कपटी
मुझे पाया पिता को धमका कर
मैं भाग रही तेरे ड्राइवर के संग
तुम करते रहना चक्का जाम