मेरी पारिजात,जीवन का अर्थ है जाना और फिर न आना - जो बताता है की वापस सिर्फ स्मृतियाँ आती हैं शख्स नहीं। पर जाना हो तो बताकर जाना हो कमसकम हम उन अंतिम क्षणों को तो जी सकें - मिल सकें एक आखिरी बार और लगा सकें गले बेपरवाह हो दुनिया की पावनदियों से। विरह में बिताने के लिए यादों का होना जरूरी है - खूबसूरत पलों को सोचकर कब रोया गया है भला। सो जरूरी है, की हर किसी को नसीब हो वो अंतिम मुलाकात परस्पर बिना किसी शर्त के। एक - दूसरे की आँखों से बहते आंसुओं की मौजूदगी आवश्यक है उसके बाद बिताए गए पलों के लिए। वो बचाती है इंसान को उस टीस से जो उसको खुदकों कोसने पे मजबूर करती हो। आसूं गवाही देते हैं कि जाना आसान नहीं था वावजूद अपवादों के। किसी को जाने देने से ज्यादा मुश्किल है किसी को रोक न पाना। और भुला पाना तो अत्यंत दुखदायी और असंभव- मैंने जब भी किसी को भूलने की कोशिश की तो उसकी स्मृतियाँ हर बार अपने हिस्से की कमाई लेने वापस आईं। अंततः यह मान लिया गया कि किसी को भुलाने का कहना महज उससे करा गया एक छलावा है जो ऊपरी तौर पर करा जाता है। हम सभी के अंदर मौजूद है हर वो शख्स जिसको भूलने का प्रयास हम हमेशा से करते आए हैं। तुम कहती थी न की छोड़ो न, अब भूल भी जाओ। भला अब कैसे बताऊँ मैं की वो आँखें जिन्हे देख मैं खोता जाता था - वो हाथ जिन्हे थामे मैं बस घंटों यूंही बैठा रहता था - वो सब भूल जाना मुमकिन तो नहीं। वो चेहरा जिसे देख मेरा हर दिन गुजरता था, वो होंठ जिनपे एक रोज मैंने अपने होंठ रखे थे, वो दिन जब कई सालों के बाद तुमने अपनी बाहें खोल मुझे उन्मे समा लेने दिया था - वो सब भूल जाना मुमकिन तो नहीं। वो माथा जिसे मैंने चूमा था जब और तुम किसी बच्चे की तरह मुस्कुराई थीं, और याद है वो पल जब हाथ पकड़े हमने घुमा था पूरा शहर या वो रात जब मेरे कंधे पे रख सर तुम सोई थीं और मैं बस तुम्हें निहारे जा रहा था। वो पल जब अचानक से तुमने कह दिया की तुम्हें प्रेम है मुझसे और मैंने तो जैसे मानने से ही इनकार कर दिया हो मेरा जवाब पता होते हुए भी। यह सब आखिर स्मृतियाँ ही तो हैं, देखो न कितनी खूबसूरत है - बिताए गए लम्हे जीये जारहे लम्हों से हमेशा ही खूबसूरत रहे हैं। आदमी हमेशा अतीत में जिया है। जितना सुंदर अतीत था उतना ही अपवाद वर्तमान में है। उन आँखों को अब देख पाना मेरी लकीरों में ...