प्राचीन काल में कान्यकुब्ज नगर में अजामिल नामक एक ब्राह्मण रहता था। अजामिल सब सदाचार भूलकर जुआ और लूटमार करके अपना घर चलाता था। इस प्रकार दुराचार करते हुए उसका सारा जीवन बीत गया। अजामिल को दस पुत्र हुए, जिनमें सबसे छोटे पुत्र का नाम था “नारायण”। अजामिल को वह बहुत प्रिय था और अजामिल अपना समय उसके साथ खेलने-खिलाने में बिताने लगा। जब अजामिल का अन्त समय आया तो यम दूत उसे लेने आए। यमदूतों को देखकर अजामिल डर गया और उसने देखा उसका पुत्र नारायण थोड़ी दूर पर खेल रहा था। उसको देखकर अजामिल जोर-जोर से नारायण-नारायण बुलाने लगा। भगवान विष्णु के पार्षदों ने जब अजामिल के मुँह से अपने स्वामी की पुकार सुनी तो वहाँ पहुँच गए और यमदूतों से उसे छोड़ने के लिए कहा। यमदूत अजामिल को छोड़कर चले गए। भगवान के पार्षदों और यमदूतों के संवाद को सुनकर अजामिल का चित्त परिवर्तित हो गया और उसे व्यसन त्यागकर हरिद्वार जाकर भगवदभजन में अपना मन लगाया और अन्त में भगवान के पार्षदों के साथ वैकुंठलोक को प्राप्त हुआ। In the ancient times in the city of Kanyakubja, lived a brahmin named Ajamila. Ajamila had no qualities of a Brahmin, and he instead he spent his time in doing wrong by others. He would rob people or con them to earn a livelihood. He spent all his life like this. He had ten sons. He loved the youngest one among them the most and named him “Narayana”. He would spend his old age playing with Narayana and would not eat before feeding young Narayana. When Ajamila’s time came, agents of Yama appeared before him to take him to Mrityuloka. Ajamila got scared and started calling out to his son, Narayana… Narayana. When agents of Bhagwaan Vishnu heard the sound of Narayana, they rushed there and stopped the Yamadutas from taking him away. Ajamila heard the conversation between the agents of Narayana and Yamadutas. This conversation made him realise his wrong ways. He became a changed man. He left all his vices and started spending time in praying to Bhagwaan. In the end, because of these good deeds, he found a place in Vaikunthaloka. Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices