• Gujarat Elections में इस बार 'व' से विकास कार्ड
    Nov 30 2022

    गुजरात की 182 विधानसभा सीटों पर एक और पांच दिसंबर को दो चरणों में वोटिंग होनी है। वोटों की गिनती आठ दिसंबर को होगी। इसके पहले चुनाव प्रचार के लिए सभी राजनीतिक दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है। एक-दूसरे पर बयानबाजी भी तेज हो गई है। बड़े नेता चुनावी रैलियां करने लगे हैं। इस बार अरविन्द केजरीवाल और राहुल गाँधी का गुजरात दौरा करना काफी फायदेमंद रहा। क्यों ? आखिर वोटर्स का क्या है मूड गुजरात में ? किसकी जीत है पक्की ? जानिए सबकुछ Gujarat Elections के बारे में विजय विद्रोही के साथ News In Depth में सिर्फ ABP LIVE PODCASTS पर

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  • क्या होते हैं Electoral Bonds , जानें क्यों सुप्रीम कोर्ट में दी गयी इसे चुनौती ?
    Nov 16 2022

    Gujarat और Himachal Elections 2022 को लेकर राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारियों को जमीन पर उतारना शुरू कर दिया है। वहीं इस बीच Supreme Court दो राज्यों के चुनाव के बीच Electoral Bond योजना में संशोधन के खिलाफ दायर एक नई याचिका पर सुनवाई के लिए Supreme Court सहमत हो गया है। इस याचिका में केंद्र सरकार की उस अधिसूचना को चुनौती दी गई है जिसमें विधानसभा चुनावों के दौरान Electoral Bond की बिक्री के लिए 15 दिनों की अतिरिक्त अवधि प्रदान करने की अनुमति प्रदान की गई है। अधिवक्ता अनूप जॉर्ज चौधरी ने इस अधिसूचना को पूरी तरह से अवैध बताया है। वहीं वकील की दलील सुनने के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ मामले की सुनवाई के लिए तैयार हो गई।

    सरकार ने इस दावे के साथ साल 2018 में Electoral Bond की शुरुआत की थी कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा. इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती हैं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते हैं. चुनावी फंडिंग व्यवस्था में सुधार के लिए सरकार ने Electoral Bond की शुरुआत की है. कैसे काम करते हैं ये बॉन्ड ? क्या है Electoral Bond की खूबी ? क्यों सुप्रीम कोर्ट में दी गयी इसे चुनौती ? क्यों घिरा है Electoral Bond विवादों में , जानें सब कुछ इसके बारे में News In Depth में विजय विद्रोही के साथ ABP LIVE PODCASTS पर

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  • क्या गरीब सवर्णों को वाकई 10% EWS Reservation का फायदा मिलेगा ?
    Nov 9 2022

    अब सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण मिलना जारी रहेगा. सुप्रीम कोर्ट के 5 न्यायाधीशों में से 3 जजों ने इस फैसले के पक्ष में फैसला सुनाया है. बता दें कि सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को 10 फीसदी आरक्षण देने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. जनवरी 2019 में संविधान संशोधन के तहत शिक्षा और नौकरी में EWS आरक्षण को लागू किया गया था, जिसके बाद तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी DMK समेत कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ चुनौती दायर की थी. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट की डिविजनल बेंच ने इस पर अपना फैसला सुनाया है. लेकिन अब सवाल ये भी उठता है क्या गरीब सवर्ण को इसका फायदा मिलेगा या अमीर सवर्ण इसका भी फायदा खींच लेंगे ? जानिये विजय विद्रोही के साथ News in Depth, ABP LIVE Podcast पर

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  • कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने कौन सी होंगी चुनौतियां और क्या खड़गे कांग्रेस में बदलाव करेंगे ?बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार विजय विद्रोही
    Oct 21 2022
    कांग्रेस को आखिरकार अपना नया अध्यक्ष मिल गया है. 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष चुने गए हैं. खड़गे ने सीधे मुकाबले में शशि थरूर को भारी मतों से हराया. मल्लिकार्जुन खड़गे को 7897 वोट मिले, जबकि शशि थरूर को महज 1072 वोट मिले. अध्यक्ष के चुनाव में कुल 9497 वोट पड़े थे. इस बार गांधी परिवार की तरफ से कोई भी सदस्य अध्यक्ष पद की रेस में शामिल नहीं था. ऐसा पिछले 24 साल में पहली बार हुआ है जब गांधी परिवार के बाहर का कोई नेता अध्यक्ष पद तक पहुंचा है.अब ये देखना होगा दिलचस्प होगा कि मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस में बदलाव करेंगे या नहीं.. सुनिए पूरी कहानी विजय विद्रोही के साथ ABP LIVE PODCAST पर
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  • क्या अपने समय के मोदी और केजरीवाल थे मुलायम सिंह यादव ? बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार विजय विद्रोही | News In-Depth
    Oct 12 2022
    मुलायम सिंह यादव अपने समय में ऐसे क्या चौंकाने वाले फैसले किया करते थे जैसे आज मोदी और केजरीवाल करते हैं। कौन अनुमान लगा सकता है 60 के दशक की डॉ॰ राममनोहर लोहिया के शिष्य मुलायम सिंह यादव गैर कांग्रेस के नारे को इस कदर बुलंदी पर चढ़ाएंगे। करीब 60 साल के राजनीतिक जीवन में मुलायम सिंह यादव तीन बार UP के CM रहे- वो देश के रक्षामंत्री भी बने- और एक वक्त ऐसा भी आया जब वो प्रधानमंत्री की कुर्सी के बेहद करीब थे- वो देश के प्रधानमंत्री भी बन सकते थे- लेकिन ऐसा क्या हुआ वो पीएम बनने से चूक गए- जी हां- आज हम आपको मुलायम सिंह यादव के उतार चढ़ाव भरे राजनीतिक जीवन की वो कहानी सुनाने वाले हैं जो कई मायनों में अहम है और ऐतिहासिक भी.. सुनिए पूरी कहानी विजय विद्रोही के साथ ABP LIVE PODCAST पर
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  • क्या कांग्रेस का High कमांड अब Low कमांड हो गया है? बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार विजय विद्रोही | News In-Depth
    Sep 28 2022

    क्या कांग्रेस का हाइकमान अब लोकमान हो गया है? वरिष्ठ पत्रकार विजय विद्रोही कहते हैं कि कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी के पास न तो अपने विधायकों को जोड़ कर चलने की क्षमता रह गई है, न ही उनके भीतर पार्टी को जिताने का दम रह गया है। कांग्रेस पार्टी के पास मुश्किल से दो प्रदेश हैं, जहाँ पर उनकी सरकार है एक तो राजस्थान और दूसरा मध्य प्रदेश। क्या ऐसे में कांग्रेस नेता सोनिया गाँधी ने अशोक गहलोत को चुनौती देने का कदम उठाकर ठीक किया? अशोक गहलोत चाहते थे कि अगर वह कांग्रेस अध्यक्ष बनते हैं, तो सचिन पायलट को राजस्थान के मुख्यमंत्री की कमान नहीं मिलती है। और बेहतर होगा कि अगर कांग्रेस अध्यक्ष और राजस्थान के मुख्यमंत्री में एक का चुनाव करना है, तो वह मुख्यमंत्री बने रहना ज़्यादा पसंद करेंगे। लेकिन कांग्रेस को यहाँ पर गहलोत पर जो कदम उठाया वह कितना ठीक था? अच्छा होता कि वह गहलोत को अध्यक्ष पद का पर्चा भरने देती। सवाल तो अजय माकन पर भी उठ रहे हैं। उन्होंने पत्रकारों के सामने ही सारी बातें उगल दींं। एक सवाल ये भी गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष क्यों नहीं बनना चाहते? राजा की जान तोते में, गहलोत की जान मुख्यमंत्री पद पर। गहलोत ये भी नहीं चाहते थे कि पायलट मुख्यमंत्री बनें। बल्कि उनको युवाओं को मौक़ा देते तो पायलट भी उनके अंदर 3 साल उपमुख्यमंत्री की इंटर्नशिप कर लेते और बाद में मुख्यमंत्री बन कर गहलोत के काम को आगे बढ़ाते। बात तो ये भी उठती है कि कांग्रेस के बड़े नेताओं को अपने गिरेबाँ में भी झाँककर देखना चाहिए।

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  • बिना गाँधी परिवार के कांग्रेस अध्यक्ष और 'भारत जोड़ो यात्रा' से क्या कांग्रेस के अच्छे दिन आएँगे? बता रहे हैं विजय विद्रोही
    Sep 21 2022

    क्या कांग्रेस के अच्छे दिन आने वाले हैं? विजय विद्रोही के मन में क्या चल रहा है!

    इस बार अध्यक्ष पद के लिए गाँधी परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव नहीं लड़ रहा है। इससे फ़ायदा कांग्रेस को ही होगा। बीजेपी जो नैरेटिव सेट करती रही है, उसको नुकसान होगा। राहुल गाँधी इसके ऊपर ख़ुद को रखने की कोशिश करेंगे कि वो पार्टी के साथ विचारधारा को बेहतर करना चाहते हैं, सड़क की राजनीति करना चाहते हैं। प्रधानमंत्री पद, अध्यक्ष पद नहींं चाहते। अगले पाँच महीने तो राहुल गाँधी कहींं नहींं जा रहे हैं। कांग्रेस जो कनेक्ट करना चाहती है, वो कर पाएगी, या जनता कांग्रेस से ख़ुद को कनेक्ट किया हुआ महसूस कर पाएगी। क्या जनता राहुल गाँधी में संभावनाएँ तलाशने लगेगी कि राहुल 3500 किमी0 की यात्रा करके आई है। कार्यकर्ताओं में उत्साह आएगा, नई पीढ़ी में भी उत्साह आ सकता है, अगर कांग्रेस बेरोज़गारी, महँगाई पर क्या विचार प्रस्तुत करती है। लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि कांग्रेस कुछ राज्य जीते। अगर आम जनता को लगेगा कि कांग्रेस जीत सकती है, तो आम आदमी भी उसको वोट देगा। दो राज्यों में चुनाव के नतीजे करीब दिसंबर तक आएँगे। तब तक यात्रा उत्तर भारत से गुज़र रही होगी। अगर गुजरात और हिमाचल में चुनाव जीत जाती है, तो इससे लोग पास आएँगे। अगर गुजरात हार जाती है और हिमाचल में जीत जाती है, तो भी लोग साथ रहेंगे। अगर दोनों जगह हार जाती है, तो इससे राहुल गाँधी की भूमिका और भी निर्णायक हो जाएगी।

    अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में लगभग 9000 वोट में से 8000 से 8500 वोट मिल सकता है क्योंकि जनता को भी ये समझ में आने लगा है कि गाँधी परिवार के फ़ेवरेट वही हैं।

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  • क्या 'भारत जोड़ो यात्रा' से राहुल गाँधी और कांग्रेस को फ़ायदा होगा? बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार विजय विद्रोही
    Sep 7 2022

    राहुल गाँधी 7 सितम्बर 2022 से 148 दिनों की 'भारत जोड़ो यात्रा' करने जा रहे हैं। कांग्रेस इस यात्रा में हर दिन 3 घंटे सुबह और 3 घंटे शाम को जनता से बातचीत करेंगे। बोलेंगे कम, सुनेंगे ज़्यादा। इस दौरान पार्टी का घोषणापत्र तैयार होगा, उसके साथ भी और एक छवि के लिहाज़ से राहुल गाँधी चीज़ें बदलने की कोशिश करेंगे। जब जब नेताओं ने पदयात्राएँ की हैं, उससे उनकी ख़ुद की छवि बढ़िया हुई है, साथ ही पार्टी को फ़ायदा हुआ है। नेता चंद्रशेखर की यात्रा की बात करें या विनोबा भावे की भूदान यात्रा की, 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा, राजनेताओं को इन यात्राओं फ़ायदा मिलता रहा है। जब भी राजनेता ख़ुद को दिशाहीन महसूस करते हैं, तो वो कई बार पदयात्रा पर निकल जाते हैं, जहाँ वो जनता से संवाद करते हैं और अपने अगले राजनीतिक कदम को रखने की कोशिश करते हैं और सियासी फ़ायदा निकालते हैं। इस यात्रा में गुजरात को शामिल नहीं किया गया है। कुछ लोग कह रहे राहुल गाँधी को हिमाचल और गुजरात की पदयात्रा करनी चाहिए थी।

    इस यात्रा में उनके साथ दूसरी पार्टियों के कौन लोग शामिल होते हैं, टेलीविज़न कितनी कवरेज देते हैं, ये सब देखना दिलचस्प होगा।

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