• Bhagavad Gita 5 .27-28

  • Jun 10 2023
  • Length: 1 hr and 3 mins
  • Podcast

  • Summary

  • Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 27-28अध्याय 5 : कर्मयोग - कृष्णभावनाभावित कर्मश्लोक 5. 27-28स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्र्चक्षुश्र्चैवान्तरे भ्रुवो: |प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ || २७ ||यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः |विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः || २८ ||स्पर्शान् – इन्द्रियविषयों यथा ध्वनि को; कृत्वा – करके; बहिः – बाहरी; बाह्यान् – अनावश्यक; चक्षुः – आँखें; च – भी; एव – निश्चय हि; अन्तरे – मध्य में; भ्रुवोः – भौहों के; प्राण-अपानौ – उर्ध्व तथा अधोगामी वायु; समौ – रुद्ध; कृत्वा – करके; नास-अभ्यन्तर – नथुनों के भीतर; चारिणौ – चलने वाले; यत – संयमित; इन्द्रिय – इन्द्रियाँ; मनः – मन; बुद्धिः – बुद्धि; मुनिः – योगी; मोक्ष – मोक्ष के लिए; परायणः – तत्पर; विगत – परित्याग करके; इच्छा – इच्छाएँ; भय – डर; क्रोधः – क्रोध; यः – जो; सदा – सदैव; मुक्तः – मुक्त; एव – निश्चय ही; सः – वह |भावार्थसमस्त इन्द्रियविषयों को बाहर करके, दृष्टि को भौंहों के मध्य में केन्द्रित करके, प्राण तथा अपान वायु को नथुनों के भीतर रोककर और इस तरह मन, इन्द्रियों तथा बुद्धि को वश में करके जो मोक्ष को लक्ष्य बनाता है वह योगी इच्छा, भय तथा क्रोध से रहित हो जाता है | जो निरन्तर इस अवस्था में रहता है, वह अवश्य ही मुक्त है | तात्पर्यकृष्णभावनामृत में रत होने पर मनुष्य तुरन्त ही अपने अध्यात्मिक स्वरूप को जान लेता है जिसके पश्चात् भक्ति के द्वारा वह परमेश्र्वर को समझता है | जब मनुष्य भक्ति करता है तो वह दिव्य स्थिति को प्राप्त होता है और अपने कर्म में भगवान् की उपस्थिति का अनुभव करने योग्य हो जाता है | यह विशेष स्थिति मुक्ति कहलाती है |मुक्ति विषयक उपर्युक्त सिद्धान्तों का प्रतिपादन करके श्रीभगवान् अर्जुन को यह शिक्षा देते हैं कि मनुष्य किस प्रकार अष्टांगयोग का अभ्यास करके इस स्थिति को प्राप्त होता है | यह अष्टांगयोग आठ विधियों – यं, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि में विभाजित है | छठे अध्याय में योग के विषय में विस्तृत व्याख्या की गई है, पाँचवे अध्याय के अन्त में तो इसका प्रारम्भिक विवेचन हि दिया गया है | योग में प्रत्याहार विधि से शब्द, स्पर्श, रूप, स्वाद तथा गंध का निराकरण करना होता है और तब दृष्टि को दोनों भौंहों के बिच लाकर ...
    Show More Show Less

What listeners say about Bhagavad Gita 5 .27-28

Average Customer Ratings

Reviews - Please select the tabs below to change the source of reviews.

In the spirit of reconciliation, Audible acknowledges the Traditional Custodians of country throughout Australia and their connections to land, sea and community. We pay our respect to their elders past and present and extend that respect to all Aboriginal and Torres Strait Islander peoples today.