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BHAGVAD GITA

By: Saksham Sahu
  • Summary

  • A Series of 18 Chapters Gita Darshan by Osho.
    Saksham Sahu
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Episodes
  • Geeta Darshan Vol-18 # Ep.219
    Nov 3 2023

    DATES AND PLACES : JUL 21 - AUG 10 1975

    Eighteenth Chapter from the series of 18 Chapters - Geeta Darshan Vol-18 by Osho. These discourses were given during JUL 21 – AUG 10 1975. --------------------------------------- संजय उवाच
    इत्यहं वासुदेवस्य पार्थस्य च महात्मनः।
    संवादमिममश्रौषमद्भुतं रोमहर्षणम्‌।। 74।।
    व्यासप्रसादाच्छ्रु्रतवानेतद्गुह्यमहं परम्‌।
    योगं योगेश्वरात्कृष्णात्साक्षात्कथयतः स्वयम्‌।। 75।।
    राजन्संस्मृत्य संस्मृत्य संवादमिममद्भुतम्‌।
    केशवार्जुनयोः पुण्यं हृष्यामि च मुहुर्मुहुः।। 76।।
    तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरेः।
    विस्मयो मे महान्‌ राजन्हृष्यामि च पुनः पुनः।। 77।।
    यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
    तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।। 78।।
    इसके उपरांत संजय बोला, हे राजन, इस प्रकार मैंने श्री वासुदेव के और महात्मा अर्जुन के इस अदभुत रहस्ययुक्त और रोमांचकारक संवाद को सुना।
    श्री व्यासजी की कृपा से दिव्य-दृष्टि के द्वारा मैंने इस परम रहस्ययुक्त गोपनीय योग को साक्षात कहते हुए स्वयं योगेश्वर श्रीकृष्ण भगवान से सुना है।
    इसलिए हे राजन, श्रीकृष्ण भगवान और अर्जुन के इस रहस्ययुक्त, कल्याणकारक और अदभुत संवाद को पुनः-पुनः स्मरण करके मैं बारंबार हर्षित होता हूं।
    तथा हे राजन, श्री हरि के उस अति अदभुत रूप को भी पुनः-पुनः स्मरण करके मेरे चित्त में महान विस्मय होता है और मैं बारंबार हर्षित होता हूं।
    हे राजन, विशेष क्या कहूं! जहां योगेश्वर श्रीकृष्ण भगवान हैं और जहां गांडीव धनुषधारी अर्जुन है, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है, ऐसा मेरा मत है।

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    1 hr and 15 mins
  • Geeta Darshan Vol-18 # Ep.218
    Nov 3 2023

    DATES AND PLACES : JUL 21 - AUG 10 1975

    Eighteenth Chapter from the series of 18 Chapters - Geeta Darshan Vol-18 by Osho. These discourses were given during JUL 21 – AUG 10 1975. --------------------------------------- कच्चिदेतच्छ्रुतं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा।
    कच्चिदज्ञानसंमोहः प्रनष्टस्ते धनंजय।। 72।।
    अर्जुन उवाच
    नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।
    स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव।। 73।।
    इस प्रकार गीता का माहात्म्य कहकर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से पूछा, हे पार्थ, क्या यह मेरा वचन तूने एकाग्र चित्त से श्रवण किया? और हे धनंजय, क्या तेरा अज्ञान से उत्पन्न हुआ मोह नष्ट हुआ?
    इस प्रकार भगवान के पूछने पर अर्जुन बोला, हे अच्युत, आपकी कृपा से मेरा मोह नष्ट हो गया है और मुझे स्मृति प्राप्त हुई है, इसलिए मैं संशयरहित हुआ स्थित हूं और आपकी आज्ञा पालन करूंगा।

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    1 hr and 11 mins
  • Geeta Darshan Vol-18 # Ep.217
    Nov 2 2023

    DATES AND PLACES : JUL 21 - AUG 10 1975

    Eighteenth Chapter from the series of 18 Chapters - Geeta Darshan Vol-18 by Osho. These discourses were given during JUL 21 – AUG 10 1975. --------------------------------------- अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयोः।
    ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्टः स्यामिति मे मतिः।। 70।।
    श्रद्धावाननसूयश्च श्रृणुयादपि यो नरः।
    सोऽपि मुक्तः शुभांल्लोकान्प्राप्नुयात्पुण्यकर्मणाम्‌।। 71।।
    तथा हे अर्जुन, जो पुरुष इस धर्ममय हम दोनों के संवाद-रूप गीता को पढ़ेगा अर्थात नित्य पाठ करेगा, उसके द्वारा मैं ज्ञान-यज्ञ से पूजित होऊंगा, ऐसा मेरा मत है।
    तथा जो पुरुष श्रद्धायुक्त और दोष-दृष्टि से रहित हुआ इस गीता का श्रवण-मात्र भी करेगा, वह भी पापों से मुक्त हुआ पुण्य करने वालों के श्रेष्ठ लोकों को प्राप्त होवेगा।

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    1 hr and 31 mins

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