कहते है एक बार माता पार्वती स्नान करने जा रही थी. तभी प्रवेश द्वार पर पहरेदारी करने के लिए उन्होंने अपने शरीर के मैल से एक मूर्त रूप बनाया. और उसमें प्राण डालकर एक सुन्दर बालक का रूप दे दिया. माता पार्वती,ने उस बालक का नाम गणेश रखा और उसे आदेश दिया कि मै स्नान करने जा रही हु, तुम द्वार पर ही खड़े रहना और बिना मेरी आज्ञा के किसी को भी द्वार के अंदर प्रवेश करने मत देना. बालक गणेश द्वार पर पहरेदारी कर रहे होते है कि तभी वहां पर भोलेनाथ आ जाते हैं और जैसे ही अंदर जाने वाले होते है बालक गणेश उन्हें वहीँ रोक देता है. भोलेनाथ जी उस बालक को उनके रास्ते से हटने के लिए कहते हैं लेकिन वह बालक माता पार्वती की आज्ञा का पालन करते हुए, भगवान शंकर को अंदर प्रवेश करने से रोकता है. जिसके कारण भगवान शंकर क्रोधित हो जाते हैं और क्रोध में अपनी त्रिशूल निकल कर उस बालक की गर्दन को धड़ से अलग कर देते हैं। गणेश जी का सिर कही दूर गिर जाता है। बालक की दर्द भरी आवाज को सुनकर जब माता पार्वती बाहर आती है तो वो गणेश जी के धड़ को देखकर बहुत दुखी हो जाती हैं. वे भगवान शंकर को बताती है कि वो उनके द्वारा बनाया गया बालक था जो उनकी आज्ञा का पालन कर रहा था. क्रोध में आकर माता पार्वती काली का रूप ले लेती है और भगवान शंकर से उनके पुत्र को पुनर्जीवित करने के लिए बोलती है। अन्यथा शृष्टि में प्रलय आ जाएगा। शिवजी विष्णुजी से आग्रह करते है उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव जिसके बच्चे की माँ अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो, उस बच्चे का सिर काटकर ले आये. विष्णु जी को एक हाथी का बच्चा दिखाई देता है. जिसकी माँ उसकी तरफ पीठ करके सो रही होती है. भगवान विष्णु उस हाथी के बच्चे का सिर काटकर ले आते है। फिर भगवान् शंकर जी, उस हाथी के सिर को बालक गणेश के सिर स्थान पर लगाकर उसे पुनः जीवित कर देते हैं. ऐसा माना जाता है की चतुर्थी के दिन गणेश जी का जन्म हुआ था इसलिए यह त्यौहार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।