बाइबल पवित्रशास्त्र ‘बाइबल’ के दो मुख्य भाग हैं जिन्हें “पुराना नियम” और “नया नियम” कहते हैं। इस नियम शब्द का अर्थ है—घोषणा या वचनबद्ध होना और कभी-कभी इसका अर्थ वसीयत भी होता है। यहाँ इस शब्द का अर्थ वचनबद्ध होने से है, यानि यह एक प्रतिज्ञा है जिसके द्वारा परमेश्वर ने मनुष्य जाति के साथ अपने आपको वचनबद्ध किया है। परमेश्वर द्वारा हमारे उद्धार के लिए की गई प्रतिज्ञा यीशु मसीह की क्रूस पर हुई मृत्यु पर आधारित है; नि:संदेह इसी प्रतिज्ञा के अनुसार परमेश्वर ने हमें यीशु के द्वारा बचा लिया है और हमें अपने स्वर्गीय राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया है। मसीह पर विश्वास रखने वालों को यह निश्चय है कि यीशु मसीह की क्रूस पर हुई मृत्यु के द्वारा समस्त मनुष्य जाति के पाप सदा के लिए मिटा दिए गए हैं—यीशु, परमेश्वर का पुत्र, जिसने इस धरती पर आज से लगभग दो हज़ार साल पहले जन्म लिया था, उसने अपने आपको उस दण्ड के लिए दे दिया जो पापी मनुष्य को मिलना था। इसका अर्थ यह है कि हमारे पापों को क्षमा किया जा सकता है, और यह कि हम परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर विश्वास कर सकते हैं, अर्थात् उस अद्भुत समाचार पर कि हम उस अनन्त जीवन को प्राप्त कर सकते हैं जो परमेश्वर हमें प्रदान करता है। इस प्रतिज्ञा का शुभ-समाचार ही बाइबल संदेश का केंद्र बिन्दु है। यीशु के जन्म से पहले जो नियम लिखा गया है उसे “पुराना नियम” और यीशु के बाद लिखे गए नियम को “नया नियम” कहते हैं। “पुराना नियम” यहूदी राष्ट्र पर केन्द्रित है, जिसे ईस्वी पूर्व 1500 से 400 के बीच अलग-अलग लेखकों ने लिखा, और इसमें 39 पुस्तकें हैं जिनमें उनका इतिहास, क़ानून, भविष्यवाणियाँ, कविताएँ और भजन मिलते हैं। परमेश्वर के नए राज्य और यीशु मसीह के आगमन के सन्देश को कई भविष्यवाणियों में बार-बार दुहराया गया है। “नया नियम” इस सच्चाई को स्पष्ट करता है कि मसीह के बारे में भविष्यवाणियाँ यीशु में कैसे पूरी हुईं, और साथ ही वह उद्धार के बारे बताता है। “नए नियम” को ईस्वी सन् 30 से 90 के यीशु मसीह के शिष्यों ने लिखा। इसका आरम्भ उन चार पुस्तकों से होता है, जिन्हें सुसमाचार कहते हैं—इनमें यीशु मसीह के जीवन का लघु इतिहास है; “नए नियम” में मसीही विश्वासियों के नाम 21 पत्र आदि भी हैं, इस तरह इसमें कुल 27 पुस्तकें हैं। ...