• Episode 17 - बाप का ब्रांड
    Nov 19 2024
    आज मैं अपने बाप के ब्रांड पर आ गया। एक अलग सा ही नशा मुझ पर छा गया। वो कमरे में उड़ता धुआं, शीशे से पिघलता आब, ग्लास में अपनी शक्ल इख्तियार करता हुआ, उन शामों के कहकहे एक दीवार से उड़कर दूसरी में समाने लगे।
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  • Episode 16 - मेरे घर के बाहर
    Nov 19 2024
    हर दस साल बाद, बीते दस साल व्यर्थ लगते हैं। और जब आने के मतलब का खुलासा होता है, समय ख़त्म हो चुका होता है।
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    3 mins
  • Episode 15 - रोटी खाना मना है
    Nov 19 2024
    खेल चलते रहना चाहिए, यही एकमात्र नियम है खेल का, ये खेल भूखे पेट का है, भूखी आंखों का है, छोटे अंगिया चोली का है, ये खेल आँखों से आँखें मिला कर मांगने का है, कुछ मिल जाने पर आपस में छीनने का है।
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  • Episode 14 - बत्ती बुझाने से पहले, बत्ती बुझने के बाद
    Oct 27 2024
    बत्ती बुझाने से पहले एक बार देख लेना चाहिए। लोग कमरों में हैं या नहीं? दरवाज़े बंद हैं या नहीं? चीज़ें अपनी जगह है या नहीं? दिल धड़क रहे हैं या नहीं? आँखें बंद है, या शून्य में तक रही है। और तक रही है तो क्या ठंडी दीवारों के पार देख पा रही है?
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    3 mins
  • Episode 13 - कमज़ोर मर्द की चिट्ठी
    Oct 27 2024
    एक बारह बाय दस का कमरा कितना बड़ा हो सकता है? ये अभी हाल ही में उसे पता लगा। इस कमरे में एक बार घुसने के बाद आदमी गुम हो सकता है। वो घंटों एक जगह बैठा रह सकता है और सैंकड़ों बार जगह भी बदल सकता है।
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    3 mins
  • Episode 12 - ज़िंदगी मौत व्यंग्य
    Oct 27 2024
    सारी उम्र जीने को कोसते रहे, किसी किस्मत नाम के कव्वे को बुलाते रहे-भगाते रहे। ऊंची पतंग भी उड़ाते रहे और कटने से भी घबराते रहे।
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    2 mins
  • Episode 11 - लीनियर स्ट्रिप (linear strip)
    Oct 21 2024
    एक दिन शायद उन्होंने भी अपने कुएं में झांक लिया था। शायद ख़ुद को ही देख लिया था। उसके बाद वे वैसी न रही। फिर हम भी उनसे वैसे न रहे।
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  • Episode 10 - मिट्ठू बोलो राम-राम
    Oct 4 2024
    सोचने वाली बात है कि समय क्या खाता होगा? क्या समय वेजिटेरियन है या नॉन–वेजिटेरियन, या कोहली की तरह वीगन? कहीं समय परजीवी तो नहीं? या कहीं ऐसा होता हो कि हर बीतते पल को आने वाला पल निगल जाता हो और डंग बीटल की तरह वक्त लुढ़कता चला जाता हो?
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